भाग्य व पुरुषार्थ
ज्योतिष की आधारभूत संकल्पना भाग्य व पुरुषार्थ के अन्योन्याश्रय सम्बन्ध पर आर्ष ज्ञान के आलोक में विकसित हुई है। प्राय: यह पुराना विवाद रहा है,कि भाग्य व कर्म में प्रमुख कौन है ?
इस जगती के समस्त चराचर, सृष्टि के स्रष्टा सूर्य की सत्ता से जुड़े हुए हैं। प्रकाश के रूप में सूर्य से आने वाली प्राणशक्ति द्वारा ही पृथ्वी पर जीव का आविर्भाव हुआ है।ज्योतिष की दृष्टि से भी सूर्य से आत्मा का प्रत्यक्ष सम्बंध का ज्ञान होता है। अतः प्रत्येक चिन्तक और विचारक की यह घोषणा शतप्रतिशत सत्य है, कि विश्व में जितने भी प्राणी हैं, वे सूर्य का ही तेज धारण किए हुए हैं, समस्त चेतना सूर्य की ही है क्योंकि यह प्राण सूर्य से ही आता है। यह प्राण निस्संदेह सूर्य की ही देन है।वनस्पति शास्त्र (बॉटनी) और कृषि शास्त्र (एग्रीकल्चर) के अध्येताओं को मालूम है,कि पृथ्वी पर जितने भी पेड़-पौधे दिखाई दे रहे हैं, ये सब सूर्य के अस्तित्व में होने के कारण ही हैं। सूर्य न होता तो वनस्पति का नाम भी न होता और जीवन नाम की कोई वस्तु भी न होती। जिस प्रकार मकड़ी अपने पेट से धागा निकालती है और अपना जाल बुनती रहती है उसी प्रकार सूर्य-गर्भ से निकला हुआ प्रकाश रूपी धागा ही सृष्टि का ताना-बाना बुनता रहता है। जब तक सूर्य है, तब तक सृष्टि है। जिस दिन सूर्य देवता ने अपनी माया समेटी उसी दिन सृष्टि का अन्त हुआ समझना चाहिए।
ज्योतिष शास्त्र के अध्ययन से विदित होता है,कि सम्पूर्ण विश्व राशि-नक्षत्र और ग्रहों से प्रभावित है। सूर्य ग्रहराज हैं। सभी ग्रहों में महान और प्रथम ग्रह हैं, जिनका ज्योतिष शास्त्र में सबसे महत्त्वपूर्ण स्थान है। सूर्य की उत्पत्ति कश्यप ऋषि के द्वारा मानी गयी है। ज्योतिष में सूर्य को भी एक ग्रह ही माना गया है। हम पृथ्वी से राशि चक्र के विभिन्न भागों में सूर्य को विभिन्न समयो में देखते हैं। इसे हम सूर्य द्वारा राशियों का भोग कहते हैं। सूर्य एक राशि पर एक मास रहते हैं। परन्तु इनका उदय एवं अस्तकाल अक्षांश एवं देशान्तरों की भिन्नता के कारण अलग-अलग होता है।
सूर्य की चाल सदा मार्गी (सीधी गति से चलने वाली) होती है। वे कभी भी वक्री नहीं होते हैं। ज्योतिष शास्त्र में सूर्य सिंह राशि का स्वामी है। इनका मूल त्रिकोण भी सिंह राशि है,जिसमें स्वगृही कहे जाते हैं।सूर्य क्षत्रिय वर्ण स्थिर स्वभाव के पुरुष ग्रह हैं। सूर्य पूर्वदिशा के स्वामी, पित्त के अधिपति हैं। आँख, कान, दाँत रक्त,अस्थि पर सूर्य का विशेष प्रभाव पड़ता है।सूर्य की अवस्था वृद्धावस्था मानी गयी है,जिससे सूझ-बूझ एवं जिम्मेदारी से आत्मबल की प्रेरणा देता है। सूर्य आत्मा और राजविद्या के अधिष्ठाता,जगत के पिता,शरीर की आत्मा,ऊर्जा के स्रोत हैं। सूर्य अन्य ग्रहों की भाँति सातवें स्थान एवं संस्थित ग्रहों को पूर्ण दृष्टि से देखते हैं।सूर्य दक्षिणायन में बलहीन एवं उत्तरायण में बलशाली हो जाते हैं। सूर्य के चंद्रमा, मंगल,गुरु मित्र हैं, बुध सम हैं तथा शुक्र और शनि शत्रु हैं। सूर्य के प्रभाव को नष्ट करने वाले शनि और राहु हैं,परन्तु सूर्य अन्य सभी ग्रहों के दोष प्रभाव को नष्ट करते हैं।
यह तो सर्वविदित है,कि सूर्य ग्रहों के अधिपति होने के कारण ग्रहाधिपति कहे गये हैं। ग्रहों के राजा होने के नाते सूर्य सभी राशियों पर अपना प्रभाव रखते हैं।
सूर्य का नैसर्गिक कारकत्व –
सूर्य आत्मा, शक्ति, तीक्ष्णता, बल, प्रभाव, गर्मी, अग्नितत्त्व, धैर्य, राजाश्रय, कटुता, आक्रामकता, वृद्धावस्था,पशुधन, भूमि, पिता, अभिरुचि, ज्ञान, हड्डी, प्रताप, पाचन शक्ति, उत्साह, वन प्रदेश, आँख, वनभ्रमण, राजा, यात्रा, व्यवहार, पित्त, नेत्ररोग, शरीर, लकड़ी, मन की पवित्रता, शासन, रोगनाश, सौराष्ट्र देश, सिर के रोग, गंजापन, लाल कपड़ा, पत्थर, प्रदर्शन की भावना, नदी का किनारा, मूँग, लाल चन्दन, काँटेदार झाड़ियाँ, ऊन, पर्वतीय प्रदेश, सोना, ताँबा, शस्त्र प्रयोग, विषदान, दवाई, समुद्र पार की यात्राएँ, समस्याओं का समाधान, गूढ़ मन्त्रणा आदि का कारक है।
सूर्य के उच्च, नीच, मूलत्रिकोण, स्व, मित्र एवं शत्रुराशियों में फल –
१.उच्च का सूर्य- सूर्य मेष राशि में उच्च का होता है। उच्च के समय में उत्पन्न जातक विद्वान, धनी, सेना, पुलिस या प्रशासन में उच्चाधिकारी, नेतृत्व करने वाला होता है।
२.नीच का सूर्य – सूर्य तुला राशि में नीच का होता है। नीच के सूर्य में उत्पन्न जातक पापकर्म करने वाला, भाई- बहिनों की सेवा करने वाला होता है।
३.मूल त्रिकोण का सूर्य – सूर्य सिंह राशि के 20 अंश तक मूल त्रिकोण का होता है। मूलत्रिकोण के सूर्य में उत्पन्न जातक यशस्वी, प्रतिष्ठावान्, धनवान् एवं पूजनीय होता है
४.स्वगृही सूर्य – सूर्य सिंह राशि के 20 अंश से 30 अंश तक स्वगृही होता है। स्वगृही सूर्य में उत्पन्न जातक सरकार से कृपा प्राप्त, ऐश्वर्यवान, कामी होता है।
५.मित्र राशि में सूर्य – सूर्य कर्क वृश्चिक, धनु और मीन में मित्र होता है। ऐसे सूर्य में उत्पन्न जातक आत्मविश्वासी, व्यवहार कुशल एवं प्रसिद्ध होता है।
६.शत्रु राशि में सूर्य – सूर्य वृषभ, कुम्भ, एवं मकर राशि में शत्रुक्षेत्री होता है। सूर्य की ऐसी स्थिति में उत्पन्न जातक आत्मविश्वास की कमी बाला, दुःखी, निर्धन, नौकरी करने वाला होता है।
ज्योतिष की आधारभूत संकल्पना भाग्य व पुरुषार्थ के अन्योन्याश्रय सम्बन्ध पर आर्ष ज्ञान के आलोक में विकसित हुई है। प्राय: यह पुराना विवाद रहा है,कि भाग्य व कर्म में प्रमुख कौन है ?
भारतीय संस्कृत वाङ्मय को मुख्यतः दो भागों में विभक्त किया गया है- आगम और निगम । निगम में वेद, उपनिषद, पुराण, स्मृति,वेदाङ्ग प्रभृति अनेक शास्त्र आते हैं,…