भाग्य व पुरुषार्थ
ज्योतिष की आधारभूत संकल्पना भाग्य व पुरुषार्थ के अन्योन्याश्रय सम्बन्ध पर आर्ष ज्ञान के आलोक में विकसित हुई है। प्राय: यह पुराना विवाद रहा है,कि भाग्य व कर्म में प्रमुख कौन है ?
ज्योतिष की आधारभूत संकल्पना भाग्य व पुरुषार्थ के अन्योन्याश्रय सम्बन्ध पर आर्ष ज्ञान के आलोक में विकसित हुई है। प्राय: यह पुराना विवाद रहा है,कि भाग्य व कर्म में प्रमुख कौन है ?
भारतीय संस्कृत वाङ्मय को मुख्यतः दो भागों में विभक्त किया गया है- आगम और निगम । निगम में वेद, उपनिषद, पुराण, स्मृति,वेदाङ्ग प्रभृति अनेक शास्त्र आते हैं,…
इस जगती के समस्त चराचर, सृष्टि के स्रष्टा सूर्य की सत्ता से जुड़े हुए हैं। प्रकाश के रूप में सूर्य से आने वाली प्राणशक्ति द्वारा ही पृथ्वी पर जीव का आविर्भाव हुआ है।